आजादी के समय की बहू

कौशल्या के घर में कोहराम मचा हुआ था। हर तरफ अफरा-तफरी का माहौल था। उनकी इकलौती बहू, वनीता, किसी तरह छत से गिर गई थी। डॉक्टर को तुरंत बुलाया गया, जिसने जांच करने के बाद कहा, “आपकी बहू के सिर पर गहरी चोट है, हालांकि वह अब खतरे से बाहर है। लेकिन उसकी याददाश्त पर असर पड़ सकता है। ये असर कैसा होगा, यह तो होश आने के बाद ही पता चलेगा।”

कौशल्या परेशान होकर भगवान से प्रार्थना करती हैं, “हे भगवान, बड़ी मुश्किल से इस नालायक बेटे की शादी हुई थी, अब मेरी बहू को क्या हो गया! बस मेरी बहू ठीक हो जाए, और मुझे कुछ नहीं चाहिए।”

थोड़ी देर बाद वनीता को होश आता है। होश में आते ही वह कहने लगती है, “अंग्रेजों, तुम्हारे जुल्मों का हम डटकर सामना करेंगे! भले ही तुम हमारे सिर पर लाठियां बरसाओ, पर हम भारत माता को आजाद करवा कर रहेंगे।”

दरअसल, वनीता की याददाश्त स्वतंत्रता संग्राम के समय में चली गई थी, जब लोग अंग्रेजों से देश को आजाद करवाने के लिए संघर्ष कर रहे थे। सौरभ, वनीता का पति, खुशी से कहता है, “मां, देखो वनीता को होश आ गया है! मेरी बीवी वापस आ गई है। हां वनीता, हम आजादी लेकर ही रहेंगे, बस तुम ठीक हो जाओ।”

यह सुनकर कौशल्या उसे जोर से थप्पड़ मारती है, “तू तो पागल ही रहेगा! अभी आजादी दिलवाती हूं तुझे!”

तभी कौशल्या का पति दामोदर वहां आता है और पूछता है, “अरे, भाग्यवान, ये क्या हो रहा है घर में?”

कौशल्या ने राहत की सांस लेते हुए कहा, “शुक्र है कि बहू को होश आ गया, लेकिन उसकी याददाश्त अब पहले की तरह नहीं रही।”

वनीता का व्यवहार समय के साथ और अजीब होता गया। वह हर बात पर आजादी के नारे लगाने लगी। एक दिन, बाजार में सब्जी लेने के दौरान वनीता को दौरा पड़ गया और वह जोर-जोर से “भारत माता की जय” और “वंदे मातरम” के नारे लगाने लगी। कौशल्या उसे किसी तरह घर लेकर आई।

कुछ दिन बाद, वनीता फिर से अपनी सास से कहती है, “मां, मैं चाहती हूं कि यहीं से आजादी की नई लड़ाई शुरू हो!”

कौशल्या, डॉक्टर की बात याद करते हुए, उसकी बात मान लेती है और आसपास के कुछ लोगों को घर बुलाती है। वनीता उन लोगों को देखकर कहती है, “आप सब भी देश को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद करवाना चाहते हैं, तो मेरे साथ जोर से बोलिए, ‘भारत माता की जय’।”

लोग नारे लगाते हैं, और वनीता जोर-जोर से चिल्लाते हुए बेहोश हो जाती है। उसका सिर हल्के से दीवार से टकराता है। जब उसे होश आता है, तो वह हैरान होकर पूछती है, “आप सब लोग हमारे घर में क्या कर रहे हैं?”

तभी एक महिला, जिसे कौशल्या ने समझाया था, बोलती है, “बेटी, हम आजादी के लिए तुम्हारे साथ हैं। जैसा तुम कहोगी, वैसा ही करेंगे।”

यह सुनकर वनीता हंसते हुए कहती है, “अरे, आजादी तो हमें 1947 में ही मिल गई थी! अब हमें देश को आगे बढ़ाने की चिंता करनी चाहिए।”

यह सुनकर सभी लोग नाराज हो जाते हैं और चले जाते हैं, जबकि कौशल्या सिर पकड़कर बैठ जाती है।

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